एयस्स नवमस्स का पाठ (सामायिक समापन सूत्र)

एयस्स नवमस्स का पाठ (सामायिक समापन सूत्र)

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एयस्स नवमस्स का पाठ (सामायिक समापन सूत्र)

एयस्स नवमस्स का पाठ

एयस्स नवमस्स सामाइय-वयस्स, पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्या, तं जहां-मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइ अकरणया, सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।1।।
सामाइयं सम्मं काएणं, न फासियं, न पालियं, न तीरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, आणाए अणुपालियं न भवइ, तस्स मिच्छा मि दुक्कड।।2।।
सामायिक में दस मन के, दस वचन के, बारह काया के इन बत्तीस दोषों में से किसी भी दोष का सेवन किया हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कड।।3।।
सामायिक में स्त्री कथा*, भक्त कथा, देश कथा, राज कथा इन चार विकथाओं में से कोई विकथा की हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कड।।4।।
सामायिक में आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, इन चार संज्ञाओं में से किसी भी संज्ञा का सेवन किया हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।।5।।
सामायिक में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का जानते, अजानते, मन, वचन, काया से सेवन किया हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कड।।6।।
सामायिक व्रत विधि से ग्रहण किया, विधि से पूर्ण किया, विधि में कोई अविधि हो गई हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।17।।
सामायिक में पाठ उच्चारण करते काना, मात्रा, अनुस्वार, पद, अक्षर, ह्रस्व, दीर्घ, कम, ज्यादा, आगे-पीछे, विपरीत पढ़ने-बोलने में आया हो तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से तस्स मिच्छा मि दुक्कड।।8।।

एयस्स नवमस्स = इस नवमें। सामाइयवयस्स = सामायिक व्रत के। पंच अइयारा = पाँच अतिचार हैं। जाणियव्वा = (वे) जानने योग्य हैं। ण समायरियब्वा = (किन्तु) आचरण करने योग्य नहीं। तं जहा = वे इस प्रकार हैं। मणदुप्पणिहाणे= मन में अशुभ विचार किये हों। वयदुप्पणिहाणे = अशुभ वचन बोले हों। कायदुप्पणिहाणे, = शरीर से अशुभ कार्य किये हों। सामाइयस्स सइ अकरणया = सामायिक की स्मृति न रखी हो। सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया = विथि पूर्वक सामायिक का पालन नहीं किया हो। तस्स = वह। दुक्कडं = दोष। मि = मेरा। मिच्छा = मिथ्या हो। सामाइयं सम्म = सामायिक व्रत को सम्यक् प्रकार। काएणं ण फासियं = काया से न स्पर्शा हो। ण पालियं = न पाला हो। ण तीरियं = पूर्ण न किया हो। ण किट्टियं = कीर्तन न किया हो। ण सोहियं - शोधन न किया हो। ण आराहियं = आराधन न किया हो। आणाए = आज्ञानुसार। अणुपालियं ण भवइ. पालन नहीं किया हो। तस्स मिच्छा मि दुक्कडं = मेरा वह पाप मिथ्या हो।

यह समापन सूत्र है। साधक अपनी साथना में सावधानी रखता है, फिर भी उससे भूलों का होना सहज संभव है। पर भूलों का सुधार कर लेना उसका कर्त्तव्य है। प्रस्तुत पाठ में सामायिक व्रत के पाँच अतिचार बताए गए हैं, जिनका आचरण नहीं करना चाहिये। साधक को सामायिक व्रत का सम्यक् रूप से ग्रहण, स्पर्शन और पालन करना चाहिये, तभी उसकी साधना सम्यक् साधना हो सकती है।

* बहिनें यहाँ 'पुरुष कथा' बोलें।

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