|| सोही उज्जुअभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ ||
ऋजु या सरल आत्मा की शुद्धि होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म ठहरता है जिस व्यक्ति में सरलता होती है, उसीकी आत्मा शुद्ध होती है। इसके विपरीत जिसमें कुटिलता होती है; उसकी आत्मा शुद्ध हो-यह सम्भव नहीं है। सरल व्यक्ति को कोई भी छल सकता है – धोखा दे सकता है – ठग सकता है; परन्तु वह स्वयं कभी किसी को छलने – धोखा देने – ठगने की कोशिश नहीं करेगा। इसके विपरीत कुटिल व्यक्ति को कोई ठगना चाहे तो उसे पसीना आ जायेगा- आसानी से वह धोखा नहीं खायेगा; परन्तु वह स्वयं दूसरों को सरलता से (आसानी से) ठग लेगा। सरल व्यक्ति को क्रोध नहीं आता और आ भी जाये तो वह कटु वचनों का प्रयोग नहीं करता| यदि कभी वह कटुवचनों का प्रयोग कर भी डाले तो तत्काल लज्जित हो जाता है; क्यों कि उसकी आत्मा शुद्ध होती है। यदि कोई शुद्ध बनना चाहे तो उसे सरल बनना पड़ेगा – कुटिलता का ध्यान तक छोड़ना पड़ेगा| धर्मात्मा बनने के लिए शुद्धि आवश्यक है; क्योंकि शुद्ध व्यक्ति में ही धर्म टिकता है।
- उत्तराध्ययन सूत्र 3/12