# धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं #
धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है समुद्र में तैरते हुए जो व्यक्ति थक कर चूर हो जाता है, उसे द्वीप मिल जाये तो कितना सुख मिलेगा उससे ? धर्म भी संसार रूप सागर में तैरते हुए जीवों के लिए द्वीप के समान सुखदायक है। अपयश या अपमान से प्राणियों को मानसिक कष्ट होता है और प्रतिष्ठा से सुख मिलता है। अधर्म से व्यक्ति तिरस्कार पाता है और धर्म से सन्मान। इसलिए धर्म भी प्रतिष्ठा का एक महान कारण होने से स्वयं प्रतिष्ठा के समान सुखद है। कैदी जेल में बैठे रहते हैं – बीमार व्यक्ति महीनों खाट पर पड़े रहते हैं, उन्हें कौनसा सुख है ? सुख स्थिरता में नहीं गतिशीलता में है। धर्म व्यक्ति को कर्त्तव्य की प्रेरणा देकर गतिशील बनाता है; इसलिए स्वयं गति के समान सुखद है। आध्यात्मिक मार्ग को अपना लेने से समस्त दुश्चिन्ताएँ शान्त हो जाती हैं।सताया हुआ व्याकुल व्यक्ति किसी वीर पुरुष की शरण में जाकर निश्चिन्त हो जाता है। धर्म भी चिन्ता – मुक्ति का एक साधन होने से उत्तम शरण है।
- उत्तराध्ययन सूत्र 23/68