|| पा समिक्खए धम्मं ||
बुद्धि ही धर्म का निर्णय कर सकती है महावीर ही थे, जिन्होंने ढाई-हजार वर्ष पहले इस सूक्ति के द्वारा बुद्धिप्रामाण्यवादका डिण्डिम घोष किया था। धर्म का निर्णय प्राचीन ग्रन्थों से या परम्परागत मान्यताओं से नहीं हो सकता| बुद्धि से और केवल बुद्धि से ही हो सकता है। स्वार्थी लोग केवल अपना उल्लू सीधा करने के लिए शास्त्रीय वाक्यों का भी दुरुपयोग किया करते हैं। प्राचीन शास्त्रों पर अन्धविश्वास के कारण जनता उनके चंगुल में फँसी रहती है। शास्त्र के नाम पर कैसी भी बात कही जाये; वह उस पर विश्वास कर बैठती है। हजारों वर्षो तक शास्त्रों के वचनों के आधार पर हमारे यहॉं हिंसक यज्ञ होते रहे हैं- मांस लोलुपी पंडितों ने दिन दहाड़े यज्ञों में पशुओं की हत्या की है और देवों का प्रसाद मान कर स्वयं तो मांस खाया ही, जनता को भी खाने के लिए विवश किया है। करुणामूर्ति श्री महावीरस्वामी ने इस अन्धविश्वास के विरुद्ध प्रबल आन्दोलन किया था, जो सफल हुआ। यदि बुद्धि कहती है कि पशुओं की हत्या करना अनुचित है तो शास्त्र के नाम पर भी क्यों की जाये ? बुद्धि से ही धर्म-निर्णय क्यों न किया जाये?
- उत्तराध्ययन सूत्र 23/25