।। सीहो व सद्देण न संतसेज्जा ।।
सिंह के समान निर्भीक; केवल शब्दों से न डरिये सिंह कितना निर्भय होता है! हाथी की चिंघाड़ से भी वह नहीं डरता। यद्यापि हाथी के शरीर से उसका शरीर बहुत छोटा होता है; फिर भी उसकी साहसिकता – उसकी वीरता उसमें प्रशंसनीय निर्भयता के भाव जगा देती है, जिससे कि वह चिंघाड़ के प्रति भी लापरवाह बन जाता है। इसी प्रकार वीर पुरुष भी शत्रुओं की ललकार से नहीं डरते; जो डर जाते हैं, वे वीर नहीं कायर हैं। वीरता का सम्बन्ध शक्ति से नहीं, साहस से है। सिंह से हाथी अधिक शक्तिशाली होता है, परन्तु साहसी सिंह हाथी का सामना करता है और उसे परास्त भी कर देता है। सिंह जितना साहसी होता है, उतना बुद्धिमान भी होता है। साहस और बुद्धिबल से ही वह गजराज से विजय पाता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमें अपनी शक्ति का विचार किये बिना किसीके भी सामने कूद पड़ना चाहिये। शक्ति का भी अपना महत्त्व है, परन्तु शत्रु के मुकाबले यदि अपनी शक्ति कम हो; तो हममें इतनी चतुराई होनी चाहिये कि शक्ति के अभाव की पूर्ति बुद्धिबल से कर सकें और निर्भयता से शत्रु के सामने सीना तानकर खड़े हो सकें।
- उत्तराध्ययन सूत्र 21/14