सभी काम दुःखप्रद होते हैं यहॉं ‘काम’ शब्द का अर्थ कार्य नहीं हैं, तीसरा पुरुषार्थ है। हिन्दी में काम शब्द दोनों अर्थों में प्रचलित है। इस सूक्ति में कामनाओं के त्याग का परामर्श दिया गया है और इसका कारण बताया है – उनकी दुःखदायकता। किसी भी वस्तु की कामना मन को अशान्त बनाने में समर्थ होती है। जब तक कामना शान्त नहीं होती, तब तक भीतर ही भीतर वह आग की तरह जल कर शान्ति, संतोष एवं सुख को जला कर भस्म करती रहती है। पॉंचों इन्द्रियों के लिए अनुकूल विषय-सामग्री पाने की कामना होती है और अपनी प्रशंसा सुनने की भी। कामनापूर्ति से तृप्ति भी होती है; परन्तु वह स्थायी नहीं होती। कामना की पूर्ति के प्रयास में जितना श्रम और समय खर्च होता है, उसके अनुपात में उससे अनुभव में आने वाला सुख बहुत ही कम होता है। ज्ञानियों ने अपने जीवन के अनुभवों का सार बताते हुए यह घोषणा की है कि इस विश्व में सब प्रकार के काम दुःखप्रदायक हैं – त्याज्य हैं। - उत्तराध्ययन सूत्र 13/16