ईर्यापथिक सूत्र, इच्छाकारेणं संदिसह
'आलोचना सूत्र' या इरियावहिया' के पाठ से गमनागमन के दोषों की शुद्धि की जाती है। गमनागमन करते हुए प्रमादवश यदि किसी जीव को पीड़ा पहुँची हो, तो इसके द्वारा खेद प्रकट किया जाता है। इरियावहिया के पाठ में पाँच प्रकार के जीवों (एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय) की विराधना का उल्लेख है। 'इरियावहिया' के पाठ में विराधना दस प्रकार की बतलायी हैं, यथा- 1. अभिहया, 2. वत्तिया, 3. लेसिया, 4. संघाइया, 5. संघट्टिया, 6. परियाविया, 7. किलामिया, 8. उद्दविया, 9. ठाणाओ ठाणं संकामिया और 10. जीवियाओ ववरोविया।
इच्छाकारेणं संदिसह भगवं! इरियावहियं पडिक्कमामि इच्छं! इच्छामि पडिक्कमिउं! इरियावाहियाऐ विराहणाऐ गमणा गमणे पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा, उत्तिंग, पणग, दग, मट्टी, मक्कड़ा, संताणा संकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिन्दिया, बेइन्दिया, तेइन्दिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया, अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडम!
भगवं = हे भगवन। इच्छाकारेणं = मेरी इच्छा है कि। संदिसह = आज्ञा दीजिये। इरियावहियं = मार्ग में आने-जाने की क्रिया का। पडिक्कमामि = प्रतिक्रमण करूँ। इच्छं = (आज्ञा पाकर बोलता है) स्वीकार है। इच्छामि = चाहता हूँ। पडिक्कमिउं = प्रतिक्रमण करना। इरियावहियाए = ईर्यापथिकी की। विराहणाए = विराधना से। गमणागमणे = जाने आने में। पाणक्कमणे = प्राणी के दबने से। बीयक्कमणे = बीज के दबने से। हरियक्कमणे = हरी वनस्पति के दबने से। ओसा = ओस। उत्तिंग = कीड़ियों के बिल। पणग = पाँच रंग की काई। दग = सचित्त पानी। मट्टी = सचित्त मिट्टी। मक्कडा संताणा = मकड़ी के जाले को। संकमणे = कुचलने से। जे = जो। मे = मैंने। जीवा = जीवों की। विराहिया - विराधना की हो। एगिदिया = एक इन्द्रिय वाले। बेइंदिया = दो इन्द्रियों वाले। तेइंदिया = तीन इन्द्रियों वाले। चउरिदिया = चार इन्द्रियों वाले। पंचिंदिया = पाँच इन्द्रियों वाले जीवों को। अभिहया = सामने आते हुए ठेस पहुंचाई हो। वत्तिया = धूल आदि से ढंके हो। लेसिया = मसले हों। संघाइया = इकट्ठे किये हों। संघट्टिया = पीड़ा पहुँचे जैसे छुआ हो। परियाविया = कष्ट पहुँचाया हो। किलामिया = खेद उपजाया हो। उद्दविया = हैरान किया हो। ठाणाओ = एक जगह से। ठाणं = दूसरी जगह। संकामिया = रखे हों। जीवियाओ = जीवन से। ववरोविया = रहित किया हो। तस्स मिच्छा मि दुक्कडं = वह मेरा पाप मिथ्या हो।
प्रस्तुत पाठ के द्वारा गमनागमन के दोषों का शोधन(शुद्धि) किया गया है। यतनापूर्वक गमन करते हुए भी यदि कहीं प्रमाद के वश किसी जीव को पीड़ा पहुँची हो, तो उसके लिए उक्त पाठ में चिंतन किया गया है।