नेत्र व्यायाम और प्राकृतिक उपाय
आँखों
का स्वास्थ्य असंयमित और अनियमित जीवनशैली के कारण बिगड़ता है। आँखों की बनावट
सूक्ष्म तथा पूर्ण हैं। आँखें उसी समय तक ठीक काम कर सकती हैं जब तक कनीनिका, जलीय द्रव, ताल और ताल के पीछे
रहने वाले द्रव स्वच्छ रहते हैं। इनमें से किसी के भी अस्वच्छ होने पर दृष्टि में
दोष उत्पन्न हो जाता है। दृष्टिपटल,
मध्य पटल,
दृष्टि नाड़ी तथा दृष्टि केन्द्रों के
रोगों से भी दृष्टि खराब हो जाती है। नेत्र व्यायाम के द्वारा आखो के दोष दूर किये जा सकते है।
छोटे
अक्षरों को पढ़ने, सीने-पिरोने,चित्रकारी करने,
स्वर्णकारी करने, घड़ीसाजी करने आदि से
आँखों पर दबाव पड़ता है। कम प्रकाश में पढ़ने या कोर्इ अन्य कार्य करने से भी
आँखों को हानि पहुँचती है। अधिक प्रकाश जैसे सूर्य या आग की ओर बहुत देर तक देखना
भी हानिकारक है। झुककर या लेटकर पढ़ने से भी आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सामने
से आता प्रकाश भी आँखों के लिए अच्छा नहीं होता है। पढ़ते या लिखते समय प्रकाश
हमेशा बार्इ ओर से या पीछे से आना आँखों के लिए सर्वोत्तम होता है।
आँखों
की भीतरी बनावट और व्यवस्था इस प्रकार से है कि पूरी आयु तक हमारी आँखें स्वस्थ रह
सकती हैं, लेकिन आधुनिक जीवन में पर्यावरण,
गलत खान-पान, विटामिन ‘ए’ की कमी, दूरदर्शन तथा फिल्म
अधिक देखने से लोगों, विशेषकर बच्चों की आँखें खराब रहने, दृष्टि कमजोर हो जाने, जल्दी चश्मा लग जाने
की शिकायत हो जाती है। थोड़ी-सी सावधानी से आँखों के रोगों से बचा जा सकता है और
आँखों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
नींद
कम लेने, लगातार नजला-जुकाम रहने,
धुआं और धूल वाले स्थान पर रहने, आँखों की अच्छी तरह
सफार्इ न करने आदि से भी आँखों की दृष्टि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आँखों के कुछ
ऐसे व्यायाम हैं जिनका प्रतिदिन अभ्यास करने से नेत्र ज्योति सदा ही बनी रहती है
और नेत्रों का आकर्षण एंव स्वास्थ्य भी सही रहता है। दृष्टि के सभी प्रकार के
रोगों का मूल कारण आँखों की बाहरी पेशियों पर तनाव पड़ना है, जो धीरे-धीरे आँखों
का आकार ही बदल देता है। पास की दृष्टि में नेत्र गोलक की लम्बार्इ बढ़ जाती है, जिससे दूर के
पदार्थों को देखने में असुविधा रहती हैं दूर की दृष्टि तथा वृद्धावस्था की अल्प
दृष्टि में नेत्र-गोलक संकुचित अवस्था में रहते है,
जिससे पास की वस्तु को देखना कठिन हो
जाता है।
आँखों
के व्यायाम नेत्र संबंधी दोषो से मुक्ति पाने में व्यक्ति की पूरी मदद करते हैं।
यहां कुछ नेत्र व्यायाम दिए जा रहे हैं,
जिनके अभ्यास से आप नेत्र समस्याओं से
मुक्ति पा सकते हैं।
करतल
विश्राम :
आँखे ढीली बंद करें। दोनों हाथों की
हथेलियां प्याली की तरह बनाकर गाल की हड्डियों पर रखते हुए उनसे अपनी बंद आँखों को
इस प्रकार ढकें कि हथेलियां आँखों को न छुएं। हथेलियों से आँखे ढकते समय ध्यान
रखें कि न तो आँखों पर कोर्इ दबाव ही पड़े और न ही कहीं से प्रकाश आ सके। हाथ और
आँखें तनाव रहित रखें। मस्तिष्क को तनावमुक्त रखने के लिए बिल्कुल कालापन का अनुभव
करें। सही रीति के करतल-विश्राम में कालापन देखने के लिए कोर्इ प्रयास न करें
बल्कि बिना किसी प्रयास के सहज ही बिल्कुल कालापन का अनुभव होना चाहिए क्योंकि तभी
आँखें और मस्तिष्क विश्राम की अवस्था में हो सकते हैं।
कुछ
समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद आप हाथ हटाकर तेजी से आँखें मिचकाइए और आँखें
खोलिए। अब आप देखेंगे कि आपकी आँखें अधिक ताजगीपूर्ण और शक्तिशाली हो गर्इ है।
करतल-विश्राम
का अभ्यास दिन में चार-पाँच बार, दो से दस मिनट तक कर सकते हैं। आँखों पर अनावश्यक दबाव से
उत्पन्न रोगों तथा मोतियाबिंद की शांति के लिए करतल-विश्राम बहुत लाभदायक है और
इसे प्रतिघंटे कुछ मिनट तक अवश्य करना चाहिए।
करतल-विश्राम
में काले रंग का ध्यान के साथ-2 मस्तिष्क को आरामदेह स्थिति में रखना भी आवश्यक है। सोचना
बिल्कुल बंद कर दें। यदि ऐसा न कर सकें तो कम से कम मस्तिष्क को अशांत करने वाले
विचार जैसे खराब स्वास्थ्य, मन की सुस्ती, चिंता, क्रोध, आदि से मुक्त रखें और इनके स्थान पर अच्छे स्वास्थ्य एवं सुखद
विचार में महत्व दें।
पुतली
घुमाने की क्रियाएं :
आँखों की मांसपेशियों और आँखों से
संबंधित स्नायु को ताकतवर व तनाव रहित बनाने के लिए करतल-विश्राम के अलावा इन
व्यायामों को भी करना चाहिए।
पुतलियों
को उपर-नीचे घुमाएं। इसके लिए रीढ़ सीधी और गर्दन को स्थिर रखकर बिना सिर घुमाएं
दोनों पुतलियों को उपर - नीचे घुमाए अथार्त दोनों पुतलियों को पहले उपर की ओर ले
जाते हुए आकाश देखें और फिर नीचे लाते हुए धरती देखें। इस तरह सहजता से क्रमष: उपर
नीचे छ: बार देखें।
पुतलियों
को बाएं-दाएं घुमाएं, मानों पुतलियां क्रमश: बाएं-दाएं कान को देख रही हों। सहजता से
ऐसा छ: बार करे।
पुतलियों को चक्राकार घुमाएं अर्थात
पहले बाएं से दाऐ बड़ा से बड़ा गोला बनाते हुए गोलकार घुमाएं और फिर दाएं से बाएं
घुमाएं। ऐसा चार बार सहजता से करें।
इस
प्रकार ( उपर-नीचे, बाएं-दाएं और गोलाकार घुमाने की ) तीनों क्रियाएं पहले
धीरे-धीरे और बाद में जल्दी-जल्दी करें। प्रत्येक क्रिया चार-छ: बार करने के बाद
कोमलता से पलक झपकाकर आँखें बंद करके कुछ क्षण विश्राम कर लें।
इन्हें
दो-तीन बार, बीच-बीच में विश्राम देकर दोहराया जा सकता है। पुतली घुमाने से
नेत्र-पेशियों का तनाव हटकर बहुत आराम मिलता है और दृष्टि शक्ति बढ़ती है।
दृष्टि
को बार-2 बदलने का अभ्यास करना चाहिए। दृष्टि को एक स्थान से हटाकर
दूसरे स्थान पर ले जाने या एक बिंदु को देखकर दूसरे बिंदु पर दृष्टि ले जाने को ‘दृष्टि - ध्यान’ कहते हैं। अंगुठे के
पास वाली तर्जनी उंगली अपनी आँखों के सामने 10
इंच की दूरी पर रखें। अब उंगली के उपरी
सिरे पर दृष्टि जमाएं और उसे साफ-2
देखें। फिर उंगली को सीध में 20 फीट दूर कोर्इ बड़ी
वस्तु जैसे खिड़की को देखें। दृष्टि को पास और दूर केंद्रित करें अर्थात बारी-बारी
से दूर-पास देखें। यह क्रिया दस बार करने के बाद एक क्षण के लिए पलक झपकाकर
विश्राम करें तथा दोहराएं। यह दृष्टि अनुसरण( Accommodation
) सुधारने के लिए विषेश गुणकारी है।
स्वस्थ दृष्टि किसी एक बिंदु पर अधिक देर तक स्थिर नहीं रहती है बल्कि एक स्थान से
दूसरे स्थान पर चलती रहती है।
पलक
झपकाएं। पलक झपकाना अर्थात् पलकों को जल्दी-जल्दी बंद करने और खोलने की क्रिया से
आँखों को आराम मिलता है, जिससे नजर तेज होती है। पलकें न झपका सकने का अर्थ है आँखों
में तनाव और गड़बड़ी। इसलिए एकटक देखने की आदत पड़ने पर दिन में कर्इ बार पलकें
झपकाने का अभ्यास करना शुरू करना चाहिए। जैसे एक बार में लगातार दस बाद पलक झपकना।
पढ़ते समय भी प्रत्येक दस सेंकड़ में एक या दो बार पलक झपकनी चाहिए। पलक झपकने से
आँखों की थकान मिटती है, आँख की पेशियां सिकुड़ने और फैलने से रक्त संचार सुधरता है। और
अश्रु ग्रंथि से पर्याप्त तरल निकलते रहने से आँख साफ गीली और चमकदार रहती है।
हंसने
और मुस्कराने का आँखों पर हितकारी प्रभाव पड़ता है और आँखों में एक मुग्ध कर देने
वाली चमक आ जाती है। हंसने से दिल हल्का होता है,
तनाव घटता है, और मानसिक तनावजन्य
रोग जैसे थकान, चिंता, विषाद, चिड़चिड़ापन आदि मिटते हैं। प्रतिदिन चार-पांच किलोमीटर दौड़ने
से जो व्यायाम होता है और उससे जो शारीरिक क्षमता बढ़ती है, उतनी ही पांच मिनट
हंसने से बढ़ती है। कम से कम दिन में तीन बार खिलखिलाकर हंसना चाहिए। उन्मुक्त
हंसी से मस्तिष्क से लेकर संपूर्ण नाड़ी-मंडल स्पंदित हो उठता है और फेफड़ों की
अशुद्ध वायु शरीर से बाहर निकल जाती है। हंसने से न केवल मानसिक तनाव घटता है
बल्कि रक्त संचालन और पाचन भी सुधरता है।
आँखों
के लिए योगासन :
आँखों के सौंदर्य और अच्छे स्वास्थ्य के
लिए अर्द्धमत्स्येंद्रासन उष्ट्रासन,
धनुरासन,
हस्तपादोत्तानासन, हलासन, सर्वांगासन, शीर्षासन आदि का
नियमित अभ्यास होना चाहिए। इनमें से उष्ट्रासन की विधि यहाँ प्रस्तुत है-
उष्ट्रासन :
वज्रासन में बैठिए। अब एड़ियों को खड़ा
करके उन पर दोनों हाथों को रखें। हाथों को इस प्रकार रखें कि अंगुलियाँ अंदर की
तरफ अंगुश्ठ बाहर को हों।
श्वास अंदर भरकर सिर एवं ग्रीवा को पीछे
मोड़ते हुए कमर को उपर उठाएं। शवास छोड़़ते हुए एड़ियों पर बैठ जाएं। इस प्रकार
तीन-चार आवर्त्ति करें।
योगासनों से साथ-साथ प्रतिदिन सूत्र तथा
जलनेति का भी अभ्यास करें। सप्ताह में तीन बार कुंजल करें। खुली हवा में सैर करे।
प्राकृतिक
प्रयोग-
आँखों
को प्रतिदिन ताजा शीतल पानी या त्रिफला के पानी से धोएं।
पढ़ते
समय या टी वी देखते समय आँखों को झपकाते रहें।
कान
में तेल, नाक में शुद्ध घी और आँख में मधु डालने से आँखे स्वस्थ रहती
है।
आँखों
के चारों ओर हाथों की उंगलियों से अच्छी तरह मालिश इस प्रकार करें कि आँखों पर
दबाव न पड़े। इसके बाद ठंड़े पानी से आँखों को धोएं या ठंडे पानी की पट्टी रखें।
ऐसा दिन में दो-तीन बार करे।
अपने
भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन ‘ए’ युक्त आहार का प्रयोग करें। हल्का तथा सुपाच्य भोजन करें। रोगी
का 50 प्रतिशत भोजन कच्चा फल,
सब्जी,
रस,
सलाद आदि और 50 प्रतिशत पका सुपाच्य
भोजन होना चाहिए।
नेत्र-ज्योति
बढ़ाने और चश्मा छुड़ाने के लिए-बदाम-गिरी,
सौंफ (बड़ी), मिश्री कूंजा-तीनों
को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और किसी कांच के बर्तन
में रख दें। प्रतिदिन रात में सोते समय 10
ग्राम की मात्रा 250 ग्राम दूध के साथ
चालीस दिन तक निंरतर लें। इससे दृष्टि इतनी तेज हो जाती है कि चश्मे की जरूरत ही
नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त इससे दिमागी कमजोरी,
दिमाग की गर्मी, दिमागी तनाव और बातों
को भूल जाने की बीमारी भी दूर हो जाती है।
बच्चों
को उपरोक्त नुस्खा आधी मात्रा में दें। पूर्ण लाभ के लिए औषधि के सेवन के दो घंटे
तक पानी न पीएं। नेत्र ज्योति के साथ-साथ याद्दाश्त भी बढ़ती है। कूंजा मिश्री न
मिले तो साधारण मिश्री का प्रयोग करे।
सुबह
उठते मुँह में पानी भरकर मुँह फुलाकर ठड़े जल से आँखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन
में तीन बार करें।
आंवला, हरड़, बहेड़ा ( गुठली रहित
) समान मात्रा में लेकर उन्हें कूटकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन शाम को इसमें से 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण
को कोरे मिट्टी या शीशे के बर्तन में एक गिलास पानी डालकर भिगो दें। सुबह इसको
मसलकर छान लें। फिर इसके निथरे हुए पानी से हल्के हाथ से नेत्रों को खूब छींटे
लगाकर धो लिया करें। इससे आँखों की ज्योति की रक्षा होती है और नजर तेज होती है।
आँखों की अनेक बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। इस त्रिफला जल से निंरतर महीने दो
महीने से कम नजर आना, आँखों के आगे अधेंरा छा जाना,
सिर घूमना, आँखों में उष्णता, रोहें, खुजली, दर्द, लाली, जाला, मोतियाबिंद आदि सब
नेत्र रोगों का नाश होता है।
नेत्र
रोगी उपचार के दौरान मैदा, चीनी, धुले हुए चावल,
खीर,
उबले हुए आलू, हलवा भारी तथा
चिकनार्इ वाले भोजन, चाय, काफी शराब, अचार, मुरब्बे, टॉफियों, चॉकलेट आदि का सेवन न करें।
कद्दूकस
किया हुआ आंवला या आंवला का मुरब्बा,
पपीता,
पका आम,
दूध,
घी,
मक्खन,
मधु,
काली मिर्च, घी-बूरा, सौंफ-मिश्री, गुड़, सूखा धनिया, चौलार्इ, पालक, पत्तागोभी, मेथी पत्ती, कढ़ी पत्ती आदि
कैरोटीन प्रधान पत्तियों वाली वनस्पतियां,
पालक या कढ़ी पत्ती युक्त दाल, अंकुरित मूंग, गाजर, बादाम, मधु आदि का सेवन
आँखों के लिए हितकारी है।
इलायची
के दानों का चूर्ण और शक्कर समभाग में लेकर उसमें एंरड का तेल मिलाकर चार ग्राम की
मात्रा में प्रतिदिन सुबह खाने से 40
दिनों में ही नजर की कमजोरी दूर हो जाती
है। इससे आँखों में ठंड़क आती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
हरा
धनिया पीसकर उसका रस निकालकर दो-दो बूंद आँखों में प्रतिदिन डालने से भी आँखों की
ज्योति में वृद्धि हो जाती है।
यह
लेख पुस्तक योग संदेश से लिया गया है।